यह कविता दबी हुई महिला की आवाज़ है। यह कविता दबी हुई महिला की आवाज़ है।
यह कविता देश में महिलाओं की स्थिति का वर्णन करती है। यह कविता देश में महिलाओं की स्थिति का वर्णन करती है।
हम औरतें तुम्हें जन्म देने से इंकार कर दे अपनी कोख का ही बहिष्कार कर दें ....! हम औरतें तुम्हें जन्म देने से इंकार कर दे अपनी कोख का ही बहिष्कार कर दें ......
हर बार की तरह इस बार भी विफल पुरुषत्व की नकेल कसने में असफल ! हर बार की तरह इस बार भी विफल पुरुषत्व की नकेल कसने में असफल !
वापसी पर वापसी पर
एक बड़ा भौरा सुबह- सुबह , गीत गाता गुनगुनाता रे । एक बड़ा भौरा सुबह- सुबह , गीत गाता गुनगुनाता रे ।